कोरोना महामारी के दौरान सभी छात्र मजदूर अपने गांव वापस आ रहें हैं, गांव में आकर उन्हें सुरक्षित महसूस हो रहा है आने वाले समय में पर्यावरण को इसी प्रकार बनाए रखने के लिए नरखेड़ के युवाओं द्वारा अधिक से अधिक पौधे लगाकर उन्हें बच्चों जैसा पालन पोषण कर रहे हैं और शहरों की अपेक्षा गांव में शुद्ध वातावरण को देख कर उन्हें और भी अच्छा लग रहा है,
ग्राम नरखेड़ में शहर से आए युवा नवीन दाबडे गांव के शीतल पर्यावरण से प्रेरित होकर अपने घर के आस पास एवं मंदिर परिसर में युवाओं के साथ मिलकर वृक्षारोपण कर उन्हें पालने का संकल्प कर रहे हैं,
युवाओं नेे बातचीत में बताया कि लाकडाउन के दौरान हम प्रकृति से ही सब कुछ ले रहे हैं, अगर अस्पताल में जाकर आक्सिजन लेंगे तो उसकी किमत हजारों का बिल चुकाकर करना पड़ता है, लेकिन हम सालों से प्रकृति से आक्सिजन, वनस्पति आदि ग्रहण करते हैं लेकिन उसको कभी मूल्य नहीं चुकाते हैं, लेकिन लाकडाउन के दौरान हमारे पास जो खाली समय है उसमें हम पर्यावरण संरक्षण को लेकर कार्य कर सकते हैं जैसे वृक्षारोपण, सोकता गढ्ढा, वर्षाजल संग्रहण के लिए अभी से कार्य कर सकते हैं, हमारी युवा पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति जागरूकता होनी चाहिए,
*"प्रकृति हमें देती है सब कुछ"*
*"हम भी तो कुछ देना सीखें"*
हमें इस सिद्धांत पर कार्य करने की आवश्यकता है।
अनुकरणीय
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