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केंद्र सरकार की श्रमिक विरोधी एवं जन विरोधी नीतियों के खिलाफ 22 मई को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस


मज़दूरों को गुलाम - बंधुआ मजदूर बनाने के षडयंत्र को विफल करो 


      किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष एवम समाज वादी समागम के महामंत्री पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने निम्न अपील जारी की है।
          देश के श्रमिक संगठनों ने  आगामी 22 मई को यानि कल  देश भर में केंद्र सरकार की श्रम विरोधी, जन विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध दिवस मनाने का फैसला किया है । देश के सभी युनियन अपने अपने तरीक़े से इस विरोध दिवस में शामिल हो रहे हैं। देश में आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों की इस सरकार ने जो दुर्गति की है वह आपके सामने है । ये आठ करोड़ प्रवासी मजदूर या तो गाँव के खेतीहर मजदूर हैं या छोटे किसान हैं जो खेती से जीविकोपार्जन का समुचित साधन न होने के कारण गाँव से शहर जाने को मजबूर होते हैं। इन श्रमिकों ने शहरों को बसाया, बनाया,रखरखाव किया ।  शहरों में इन्हें रोजगार देने वाले लोगों ने विपत्ति के समय मुंह मोड़ लिया।
 भोजन और किराए तक का इंतज़ाम नहीं किया।
       केंद्र सरकार तमाम निर्देश जारी करती रही कि लॉकडाउन के समय का मजदूरों का पूरा वेतन दिया जाएगा लेकिन अधिकतर मजदूरों को वेतन नहीं मिला,रोजगार खत्म हो गया ।तानाशाही पूर्ण तरीके से किये गए लॉकडाउन के बाद  निर्माण मजदूरी ,हम्माली ,सफाई या
छोटा-मोटा काम धंधा जो ये लोग किया करते थे, जो ठेले गुमठी लगाने का काम या होटलों, रेस्टॉरेंटों या छोटी दुकानों में काम किया करते थे ,बन्द कर दिए जाने के कारण  सभी मजदूर भुखमरी की कगार पर पंहुचा दिये गए ,तब मजबूरी में इन मजदूरों को भुखे मरने से बचने के लिए पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा पर बाल बच्चों सहित निकलना पड़ा।
      भारत के विभाजन के समय 1947 जो विस्थापन देखा गया था  उसी  तरीके की स्थिति  शहर से गांव वापसी की फिर दिखलाई पड़ी।
 चार करोड़ यात्रियों को रोज यात्रा कराने का दम  भरने वाली रेल्वे, बसों तथा गाड़ियों को बंद करके जो रास्ते में दिखे ,उसे पुलिस द्वारा पीटने की स्थिति आप सब ने  देखी है। तय है कि सब कुछ देखने पर आपका मन व्यथित हुआ होगा,कुछ नागरिकों को गुस्सा भी आया होगा।
 बात यहीं  तक रूकी नहीं 43 डिग्री में  प्रवासी मजदूरों की पैदल रास्ते में  लौटते हुए 500 की 
मौत हो गई।  
एक तरफ भारत सरकार विदेश में रहने वाले नागरिकों को लाने के लिए  वंदे भारत अभियान के तहत हवाई जहाज चला रही है, वहीं दूसरी ओर ट्रेन, बसें तथा आवागमन के तमाम साधन मौजूद होने के बावजूद उनका इस्तेमाल नही होने दिया। राज्यों की सीमाओं पर मज़दूरों को रोका गया ।
देश भर के तमाम अर्थशास्त्रीयों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं ,मजदूरों संगठनों ने इन श्रमिकों के खाते में पाच से दस हजार रूपया महीना जमा करने की मांग को लेकर उपवास किये, ज्ञापन दिये लेकिन  पांच सौ और  हजार रुपए से आगे सरकार नही बढ़ी । इन मजदूरों को वह पैसा भी आज तक नही मिला ।लॉकडाउन के 60 दिन बाद भी आज प्रवासी मजदूर पैदल चलने को मजबूर है जो दो महीने से शहर में फंसे हुए है उन्हें भी मालूम नहीं की कब उन्हें ट्रेन मिलेगी ?
 देश में श्रमिकों की संंख्या 54 करोड़ है जिनमें से 93% असंगठित क्षेत्र के मजदूर है । इन सभी का जीवन अस्तव्यस्त हो गया है। अब सरकारों ने घोषणा की है कि वह सुबह 6 बजे से रात के 12 बजे तक बाजार खोलेगी तथा  मजदूरों से आठ घंटे की जगह बारह घंटे काम लिया जाएगा ।यह मज़दूरों को गुलाम - बंधुआ मजदूर बनाने का षडयंत्र है,जिसे विफल करना भारत के संविधान में विश्वास रखने वाले का कर्तव्य है।

 हमने एक मई को जो मई दिवस मनाया था वह इसलिए था क्योंकि इस दिन अमेरिका के तीन लाख मजदूरों ने शिकागो में आठ घंटे से अधिक काम नहीं करने की घोषणा की थी । गत डेढ़ सौ सालों में मजदूर आंदोलन ने देश में जो 44 श्रम कानून बनवाएं और लागू करवाए थे, उनको मोदी सरकार ने खतम कर कार्पोरेट को अधिकतम मुनाफा देने के लिए चार श्रमिक कोड में परिवर्तित कर दिया है। सरकार ने कर्मचारियों का डीए भी रोक दिया है । गुजरात जैसे राज्यों में अब ट्रेड युनियन को ही खतम करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। सरकार कार्पोरेट को बचाने के लिए लाखों करोड़ लुटा रही है लेकिन मजदूरों को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं है। जिस तरह किसान आंदोलन ,अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले किसानों की कर्जामुक्ति ,लागत से  डेढ़ गुना दाम के समर्थन मूल्य के सभी कृषि उत्पादों के खरीद ( मंडी एक्ट में संशोधन कर सरकार ने किसानों को बाजार के हवाले कर दिया है )
 किसानों ,खेतीहर मजदूरों को दस हजार रुपए प्रति महीने देने तथा कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने की मांग कर रहा है । उसी तरह श्रमिक आंदोलन द्वारा 44 श्रम कानूनों की बहाली, लॉकडाउन के दौरान सभी कामगारों को पूरे वेतन का भुगतान, सभी श्रमिकों की पुराने रोजगार में बहाली, प्रवासी मजदूरों को दस हजार रुपए प्रति माह का इंतजाम करने और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के निजीकरण पर रोक लगाने की मांग कर रहा है।
       मोदी सरकार के गत छः वर्ष के कार्यकाल से यह स्पष्ट हो गया है कि वह किसान मजदूर विरोधी एवं कार्पोरेट को अधिकतम लाभ दिलाने के लिए काम करने वाली सरकार है इसलिए जब देश के 54 करोड़ श्रमिक 22 मई को विरोध दिवस मना रहे हैं तब किसानों - किसान संगठनों ,जनसंगठनों को भी उनके साथ खड़ा होना चाहिए ।
        आपसे अनुरोध है कि किसान मजदूर एकता , "किसान-मजदूर भाई-भाई,  लड़ के लेंगे पाई-पाई । " तथा  "कार्पोरेट को छूट, किसानों मज़दूरों की लूट, नही चलेगी, नही चलेगी,श्रम कानूनों को बहाल करो  आदि नारों के साथ 22 मई के विरोध दिवस मे बढ़चढ़कर हिस्सा लें ।

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